Friday, November 30, 2007

महेश्‍वरनाथ

छत्तीसगढ़ के अधिकां श शिव मंदिर सृजन और कल्याण के प्रतीक स्वरूप निर्मित हुए हैं। लिंग रहस्य और लिंगोपासना के बारे में स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है, उसके अनुसार भगवान महे वर अलिंग हैं, प्रकृति प्रधान लिंग है -

आकाशं लिंगमित्याहु पृथिवी तस्य पीठिका।
आलय: सर्व देवानां लयनाल्लिंग मुच्यते।।

अर्थात् आका श लिंग और पृथ्वी उसकी पीठिका है। सब देवताओं का आलय में लय होता है, इसीलिये इसे लिंग कहते हैं। हिन्दू धर्म में शिव का स्वरूप अत्यंत उदात्त रहा है। पल में रूश्ट और पल में प्रसन्न होने वाले और मनोवंशछित वर देने वाले औघड़दानी महादेव ही हैं।

छत्तीसगढ़ में राजा-महाराजा, जमींदार और मालगुजारों द्वारा निर्मित अनेक गढ़, हवेली, किला और मंदिर आज भी उस काल के मूक साक्षी है। कई लोगों के वं श खत्म हो गये और कुछ राजनीति, व्यापार आदि में संलग्न होकर अपनी वं श परम्परा को बनाये हुए हैं। वं श परम्परा को जीवित रखने के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता ? राजा हो या रंक, सभी वं श वृद्धि के लिए मनौती मानने, तीर्थयात्रा और पूजाऱ्यज्ञादि करने का उल्लेख तात्कालीन साहित्य में मिलता हैं। देव संयोग से उनकी मनौतियां पूरी होती रहीं और देवी-देवताओं के मंदिर इन्ही मनौतियों की पूर्णता पर बनाये जाते रहे हैं, जो कालान्तर में उनके ''कुलदेव`` के रूप में पूजित होते हैं। छत्तीसगढ़ में औघड़दानी महादेव को वं शधर के रूप में पूजा जाता है। खरौद के लक्ष्मणे वर महादेव को वं शधर के रूप में पूजा जाता है। यहां लखेसर चढ़ाया जाता है। हसदो नदी के तट पर प्रतिश्ठित काले वरनाथ महादेव वं शवृद्धि के लिए सुविख्यात् है। खरियार के राजा वीर विक्रम सिंहदेव ने काले वर महादेव की पूजा अर्चना कर वं श वृद्धि का लाभ प्राप्त किया था। खरियार के युवराज डॉ. जे. पी. सिंहदेव ने मुझे सूचित किया है-''मेरे दादा स्व. राजा वीर विक्रम सिंहदेव ने वास्तव में वं श वृद्धि के लिए पीथमपुर जाकर काले वर महादेव की पूजा और मनौती की थी। उनके आ शीर्वाद से दो पुत्र क्रम श: आरतातनदेव, विजयभैरवदेव और दो पुत्री कनक मंजरी देवी और भाोभज्ञा मंजरी देवी हुई और हमारा वं श बढ़ गया।'' इसी प्रकार माखन साव के वं श को महे वर महादेव ने बढ़ाया। इन्ही के पुण्य प्रताप से बिलाईगढ़-कटगी के जमींदार की वं शबेल बढ़ी और जमींदार श्री प्रानसिंह बहादुर ने नवापारा गांव माघ सुदी ०१ संवत् १८९४ में महे वर महादेव के भोग-रागादि के लिए चढ़ाकर पुण्य कार्य किया।

महानदी के तट पर छत्‍तीसगढ़के सुप्रसिद्ध मालगुजार श्री माखनसाव के कुलदेव महे वर महादेव और कुलदेवी शीतला माता का भव्य मंदिर, बरमबाबा की मूर्ति और सुन्दर घाट है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा द्वारा लिखित श्री शबरीनारायण माहात्म्य के अनुसार इस मंदिर का निर्माण संवत् १८९० में माखन साव के पिता श्री मयाराम साव और चाचा श्री मनसाराम और सरधाराम साव ने कराया है। माखन साव भी धार्मिक, सामाजिक और साधु व्यक्ति थे। ठाकुर जगमोहनसिंह ने 'सज्जनाश्टक' में उनके बारे में लिखा है। उनके अनुसार माखनसाव क्षेत्र के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बद्रीनाथ और रामे वरम् की यात्रा की और ८० वर्श तक जीवित रहे। उन्होंने महे वर महादेव और शीतला माता मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उनके पौत्र श्री आत्माराम साव ने मंदिर परिसर में संस्कृत पाठ शाला का निर्माण कराया और सुन्दर घाट और बाढ़ से भूमि का कटाव रोकने के लिए मजबूत दीवार का निर्माण कराया। इस घाट में अस्थि विसर्जन के लिए एक कुंड बना है। इस घाट में अन्यान्य मूर्तियां जिसमें शिवलिंग और हनुमान जी प्रमुख हैं, के अलावा सती चौरा बने हुए हैं। महे वरनाथ की महिमा अपरम्पार है, तभी तो कवि स्व. श्री तुलाराम गोपाल उनकी महिमा गाते हैं -
सदा आज की तिथि में आकर यहां जो मुझे गाये
लाख बेल के पत्र, लाख चावल जो मुझे चढ़ाये
एवमस्तु ! तेरे कृतित्व के क्रम को रखने जारी
दूर करूंगा उनके दुख, भय, क्ले श, भाोक संसारी

महानदी में बाढ़ आने पर नदी का जल महे वरनाथ को स्प र्श कर उतरने लगता है। ठाकुर जगमोहनसिंह ने प्रलय में इसका उल्लेख किया है -

बाढ़त सरित बारि छिन-छिन में। चढ़ि सोपान घाट वट दिन मे।
शिवमंदिर जो घाटहिं सौहै। माखन साहु रचित मन मोहै।।८४।।
चट शाला जल भीतर आयो। गैल चक्रधर गेह बहायो।
पुनि सो माखन साहु निकेता।। पावन करि सो पान समेता।।८७।।

शिवरीनारायण के अलावा हसुवा, टाटा और लखुर्री में महेश्वर महादेव का और झुमका में बजरंगबली का भव्य मंदिर है। हसुवा के महे वर महादेव के मंदिर को माखन साव के भतीजा और गोपाल साव के पुत्र बैजनाथ साव, लखुर्री के महे वरनाथ मंदिर को सरधाराम साव के प्रपौत्र प्रयाग साव ने और झुमका के बजरंगबली के मदिर को बहोरन साव ने बनवाया। इसी प्रकार टाटा के घर में अंडोल साव ने शिवलिंग स्थापित करायी थी। माखन वं श द्वारा निर्मित सभी मंदिरों के भोगराग की व्यवस्था के लिए कृशि भूमि निकाली गयी थी। इससे प्राप्त अनाज से मंदिरों में भोगराग की व्यवस्था होती थी। आज भी ये सभी मंदिर बहुत अच्छी स्थिति में है और उनके वं शजों के द्वारा सावन मास में श्रावणी पूजा और महाशिवरात्रि में अभिशेक किया जाता है।

शिवरीनारायण के इस महे वरनाथ मंदिर के प्रथम पुजारी के रूप में श्री माखन साव ने पंडित रमानाथ को नियुक्त किया था। पंडित रमानाथ ठाकुर जगमोहनसिंह द्वारा सन् १८८४ में लिखित तथा प्रकाशित पुस्तक ''सज्जनाश्टक'' के एक सज्जन थे। उनके मृत्यूपरांत उनके पुत्र श्री शिवगुलाम इस मंदिर के पुजारी हुए। फिर यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस मंदिर का पुजारी हुआ। इस परिवार के अंतिम पुजारी पंडित देवी महाराज थे जिन्होंने जीवित रहते इस मंदिर में पूजा-अर्चना की, बाद में उनके पुत्रों ने इस मंदिर का पुजारी बनना अस्वीकार कर दिया। सम्प्रति इस मंदिर में पंडित कार्तिक महाराज के पुत्र श्री सु शील दुबे पुजारी के रूप में कार्यरत हैं।

सम्प्रति माखन साव के वं शजों ने मंदिर का जीर्णोद्धार करके मंदिर को आकर्शक बनवा लिया है। महाशिवरात्रि को इस मंदिर में पूजा-अर्चन और अभिशेक कराया जाता है। इसी प्रकार दोनों नवरात्र में शीतला माता के मंदिर में ज्योति कल श प्रज्वलित कराया जाता है।

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