Friday, November 30, 2007

महानदी में अस्थि विसर्जन

भारत की प्रमुख नदियों में महानदी भी एक है। इसे ''चित्रोत्पला-गंगा'' भी कहा जाता है। इसका उद्गम सिहावा की पहाड़ी में उत्पलेश्वर महादेव और अंतिम छोर में चित्रा-माहेश्वरी देवी स्थित हैं। कदाचित् इसी कारण महाभारत के भीष्म पर्व में चित्रोत्पला नदी को पुण्यदायिनी और पाप विनाशिनी कहकर स्तुति की गयी है :-

उत्पलेशं सभासाद्या यीवच्चित्रा महेश्वरी।
चित्रोत्पलेति कथिता सर्वपाप प्रणाशिनी।।

महानदी के उद्गम स्थल को ''विंध्यपाद'' कहा जाता है। पुरूषोत्तम तत्व में चित्रोत्पला के अवतरण स्थल की ओर संकेत करते हुए उसे महापुण्या तथा सर्वपापहरा, शुभा आदि कहा गया है :-

नदीतम महापुण्या विन्ध्यपाद विनिर्गता:।
चित्रोत्पलेति विख्यानां सर्व पापहरा शुभा।।

महानदी को ''गंगा'' कहने के बारे में मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रृंगी ऋषि का आश्रम सिहावा की पहाड़ी में था। वे अयोध्या में महाराजा दशरथ के निवेदन पर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराकर लौटे थे। उनके कमंडल में यज्ञ में प्रयुक्त गंगा का पवित्र जल भरा था। समाधि से उठते समय कमंडल का अभिमंत्रित जल गिर पड़ा और बहकर महानदी के उद्गम में मिल गया। गंगाजल के मिलने से महानदी गंगा के समान पवित्र हो गयी। कौशलेन्द्र महाशिवगुप्त ययाति ने एक ताम्रपत्र में महानदी को चित्रोत्पला के नाम से संबोधित किया है :-
चित्रोत्पला चरण चुम्बित चारूभूमो
श्रीमान कलिंग विषयेतु ययातिषुर्याम्।
ताम्रेचकार रचनां नृपतिर्ययाति
श्री कौशलेन्द्र नामयूत प्रसिद्ध।।
१७ वीं शताब्दी के महाकवि गोपाल ने भी महानदी को ''अति पुण्या चित्रोत्पला'' माना है

पाप हरन नरसिंह कहि बेलपान गबरीस,
अतिपुण्या चित्रोत्पला तट राजे सबरीस।

इसी प्रकार स्कंद पुराण में ''पुरूषोत्तम क्षेत्र'' की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए महानदी को माध्यम बनाया गया है :-
ऋषिकुल्या समासाद्या दक्षिणोदधिगामिनीम्।
स्वर्णरेखा महानद्यो मध्ये देश: प्रतिष्ठित: ।।

अर्थात् पुरूषोत्तम क्षेत्र स्वर्णरेखा से महानदी तक विस्तृत रूप से फैला है, उसके दक्षिण में ऋषिकुल्या नदी स्थित है।

यह नारायण क्षेत्र की महिमा अति अद्भूत
सुनहि जे सादर पे्रमयुत, तिन्हन छुवै यमदूत।
जे नारायण क्षेत्र में करै वास नर नारि
जीवन्मुक्त सुधन्य वह होय प्रसन्न मुरारि।।
भावार्थ
यह नारायण क्षेत्र की महिमा परम अद्भूत है। जो कोई सादर इसे चि>श देकर सुनेगा, उसको यमदूत कदापि छू नहीं सकेंगे। जो कोई स्त्री वा पुरूष इस नारायण क्षेत्र में वास करेेंगे, उन्हें जीवन्मुक्त और धन्य २ कहना चाहिये। ५/१११-११२।

कहा गया है कि महानदी के जल का स्प र्श करके पितृ देवों का तर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से उन्हें अक्षय लोकों की प्राप्ति होती है और उसके कुल का उद्धार हो जाता है। सुप्रसिद्ध कवि बुटु सिंह चौहान भी गाते हैं :-

दोहा
शिव गंगा के संगम में, कीन्ह अस पर वाह।
पिण्ड दान वहां जो करे, तरो बैकुण्ठ जाय।।

चौपाई
वहां स्नान कर यह फल होई।
विद्या वान गुणी नर सोई।।
एक सौ पितरन वहां पर तारे।
पितरन पिण्ड तहां नर पारै।।
गाया समान ताही फल जानो।
पितरन पिण्ड तहां तुम मानो।।
मानो पितर गाया करि आवे।
पितरन भूरि सबै फल पाये।।
जो कोई जायके पिण्ड ढरकावहीं।
ताकर पितर बैकुण्ठ सिधावहीं।।

दोहा
क्वांर कृश्णो सुदि नौमि के, होत तहां स्नान।
कोढ़िन को काया मिले, निर्धन को धनवान।।
महानदी गंग के संगम में, जो किन्हे पिण्ड कर दान।
सो जैहैं बैकुण्ठ को, कहीं बुटु सिंह चौहान।।

शिवरीनारायण में महानदी के तट पर स्थित माखन साव घाट और राम घाट में अस्थि विसर्जन के लिए कुंड बने हुए हैं। माखन साव घाट में रेत के नीचे दबे चट्टान में भी एक अस्थि विसर्जन के लिए कुंड है लेकिन यह कुंड रेत के हटने के बाद दृश्टिगोचर होता है।

कदाचित यही कारण है कि यहां सज्जन व्यक्तियों का वास है जो सदा हरि कीर्तन में रत रहते हैं। भारतेन्दु कालीन कवि पंडित हीराराम त्रिपाठी भी गाते हैं :-

दोहा

चित्रउतपला के निकट श्रीनारायण धाम।।
बसत सन्त सज्जन सदा शिवरीनारायणग्राम।। १ ।।

सवैया

होत सदा हरिनाम उच्चारण रामायण नित गान करैं।
अति निर्मल गंगतरंग लखै उर आनंद के अनुराग भरैं।
शबरी वरदायक नाथ विलोकत जन्म अपार के पाप हरैं।
जहां जीव चारू बखान बसैं सहजे भवसिंधु अपार तरैं।। १ ।।

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