Friday, November 30, 2007

महानदी के घाट

भारत में घाटों की नगरी के रूप में बनारस विख्यात् है। पवित्र और मोक्षदायी गंगा के तट पर बनारस नगर स्थित है। पूरे भारत के राजा, महाराजा और जमींदारों ने स्मृति चिन्ह के रूप में यहां घाटों का निर्माण कराया है। यहां के सभी घाटों का अपना महत्व है। उसी तर्ज में छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी शिवरीनारायण में मोक्षदायी चित्रोत्पलागंगा के तट पर अनेक घाट बने हुए हैं। यह नगर अति प्राचीन है। सतयुग में यहां मतंग ऋशि का गुरूकुल आश्रम था और आगे चलकर भाबरी भी यहां कुटिया बनाकर रहने लगी। उनकी ई वर के प्रति सच्ची भक्ति को देखकर मतंग ऋशि ने बताया कि त्रेतायुग में श्रीरामचंद्र जी तुम्हें द र्शन देने यहां आवेंगे। उनके द र्शन से तुम्हारा न केवल उद्धार होगा बल्कि यह क्षेत्र तुम्हारे और ई वर के संयुक्त नाम से जग प्रसिद्ध होगा। त्रेतायुग में श्रीरामचंद्र जी यहां आते हैं और भाबरी का उद्धार करते हैं। तब से यह क्षेत्र ' शबरीनारायण' के रूप में जग प्रसिद्ध होता है। भाबरीनारायण माहात्म्य में भी उल्लेख है :-

मुनिजन से आशीर्वाद पाकर श्रीयुत् राम और लक्ष्मण शिबरी के गृह गये। भक्ति परिपूर्ण शिवरी ने भ्राता सहित श्रीराम की पूजा और स्तुति करी और हर्ष से गद्गद होकर शाष्टांग नमस्कार कर बोली। आइये ! हे प्रलम्बबाहु राम ! मेरी दीन कुटी को पावन कीजिये। कमल लोचन श्रीराम ने भक्तिभाव देखके भिल्लिनी शिवरी को आतिथ्य अंगीकार कियो। पहुनाई कर वाके फल फूल ग्रहण किये और वाकी भक्ति से प्रसन्न होकर कह्यो कि हे शबरी ! वरदान मांग ।। शवरर्युवाच ।। शबरी कहती भई। हे राम ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो एक वरदान हेतु याचना करती हूं, सो दीजिये। अर्थात् लोक में मेरे नाम सहित आपका नाम विख्यात् हो। शिवरीनारायण ऐसा नाम इस तीर्थ का होवे। नन्तर शिवरी ने कहा हे भूपाल ! अब मेरे अर्थ चिता रचिये। हे कमलनयन मेरे पंचात्मक देह को दग्धकर अब मैं आपके भवन में वास करूंगी।

भगवान भाबरीनारायण के गुप्त वास के कारण यह गुप्त प्रयाग के रूप में जग प्रसिद्ध हुआ। यहीं भगवान भाबरीनारायण के चरण को स्प र्श करती हुई मोक्षदायी 'रोहिणी कुंड' है। चित्रोत्पला गंगा में अस्थि विसर्जन किया जाता है और ऐसी मान्यता है कि यहां अस्थि विसर्जन करने से मोक्ष मिलता है। कदाचित् इसी कारण यहां के लोगों ने यहां घाटों का निर्माण कराया है। यहां के घाटों में प्रमुख घाट निम्न लिखित है:-

१.माखन साव घाट २. बुटी साव घाट ३. कृपाराम साव घाट ४. बावा घाट ५. परभुवा घाट ६. राम घाट ७. हनुमान घाट ८. गऊ घाट ९. भवानी बेड़ा घाट १०. जोगीडीपा घाट ११. डोंगा घाट १२. सोनी घाट १३. सिपाही घाट १४. रपटा घाट १५. भम शान घाट । इन घाटों का अपना महत्व है, इनका विवरण निम्नानुसार है :-

माखन साव घाट :- शिवरीनारायण के घाटों में यह घाट बहुत महत्वपूर्ण है। इस घाट में हसुवा के मालगुजार श्री माखन साव के पिता श्री मयाराम साव के द्वारा प्रतिश्ठित और माखन साव के द्वारा निर्मित भव्य महे वरनाथ और शीतला माता का मंदिर है। वं श का बढ़ाने वाले महे वरनाथ की कृपा न केवल माखन वं श को मिली बल्कि कटगी-बिलाईगढ़ के जमींदार के वं श को भी मिली है। सन् १८३८ में कटगी-बिलाईगढ़ के जमींदार श्री परानसिंह ने नावापारा गांव को इस मंदिर में चढ़ाया था। इस गांव की आमदनी से इस मंदिर में भोगराग, सावन में श्रावणी और महाशिवरात्रि में भव्य पूजा-अर्चना होता था। माखन साव ने मंदिर निर्माण के साथ पि चमी छोर पर घाट और ऊंची दीवार खड़ी करवाया। इस दीवार में तीन छिद्र बने हुए हैं जो महानदी में बाढ़ की स्थिति को बताते हैं। बाद में माखन वंश के मालगुजार श्री आत्माराम ने सन् १९२६ में अंग्रेज सरकार से अनुमति लेकर इस घाट का विस्तार किया और पूर्वी छोर पर ऊंची दीवार बनवायी। इस घाट में अस्थि विसर्जन के लिए कुंड, सती चौरा और समाधि चौरा बने हुए हैं। इस घाट में ग्राम रक्षक देव बरमबाबा की मूर्ति है।

बुटी साव घाट :- माखन साव घाट के पूर्व में बुटी साव घाट है। श्री पंचराम, श्री रामदयाल, श्री परसराम, श्री शिवरात्री, श्री मुकुंद साव के पूर्वजों ने इस घाट का निर्माण कराया है।

कृपाराम साव घाट :- माखन साव घाट के पि चम में कृपाराम साव घाट है। श्री प्रयाग साव के पूर्वजों ने इस घाट का निर्माण कराया है।

बावा घाट :- कृपाराम साव घाट के पि चम में शिवरीनारायण मठ के महंत श्री लालदास ने साधु संतो ंके स्नान आदि के लिए बावा घाट का निर्माण कराया है। साधु संतों को छत्तीसगढ़ी में बावा कहा जाता है इसलिए इस घाट को बावा घाट कहा जाने लगा।

परभुवा घाट :- बावा घाट से लगा हुआ अधूरा परभुवा घाट है। परभुवा पारा के लोगों ने इस घाट का निर्माण कराने का संकल्प किया था लेकिन अंतिम समय में जन सहयोग नहीं मिलने के कारण यह घाट अधूरा रह गया।

रामघाट :- परभुवा घाट से लगा हुआ राम घाट है। श्रीराम भक्त केंवट समाज के द्वारा इस घाट का निर्माण कराया गया है। इस घाट में भी अस्थि विसर्जन कुंड है।

हनुमान घाट :- रामघाट से लगा हुआ नवनिर्मित हनुमान घाट है। इस घाट का निर्माण नगर के श्री गणे शप्रसाद नारनोलिया ने अपने पिता श्री हनुमान प्रसाद की स्मृति में बनवाया है।

गऊ घाट :- हनुमान घाट के लगा हुआ गऊ घाट है। इस घाट में गायों द्वारा पानी पीने के कारण इस घाट का नाम गऊ घाट पड़ा। मेला के अवसर पर भाशसन द्वारा इसी घाट में पम्प के द्वारा पीने के पानी की व्यवस्था की जाती थी।

भवानी बेड़ा :- गऊ घाट से लगा हुआ भवानी बेड़ा है। यहां पर एक बड़ा गड्ढ़ा है जहां से बाढ़ का पानी बस्ती में प्रवे श करता है। यहां पर पत्थर की ऊंची दीवार खड़ी की गयी है।

जोगीडीपा घाट :- बस्ती के पि चमी छोर में प्राचीन सिंदूरगिरि में महंत अर्जुनदास जी की प्रेरणा से भटगांव के जमींदार ने संवत् १९२७ में एक भव्य भवन बनवाकर सुंदर बगीचा लगवाया था। उनकी प्रेरणा से श्री बैजनाथ साव, श्री चक्रधर, श्री बोधराम और श्री अभयराम पांडेय ने संवत् १९२८ में यहां एक बजरंगबली का भव्य मंदिर बनवाया था जो आज भी सुरक्षित है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी यहां एक सप्ताह विश्राम करके विजयाद शमी को वापस मठ लौटते हैं। भगवान जगन्नाथ के यहां एक सप्ताह रूकने के कारण इसे 'जनकपुर' भी कहा जाता है। इस अवसर पर जन समुदाय यहां उनके द र्शन करने आता है। लोग आंवला नवमी के अवसर पर यहां भोज करने आते थे। द शहरा के दिन मठ से महंत जी अपने लावल कर के साथ यहां आज भी आते हैं और द्वार पूजन के बाद लौटकर गादी पूजा में बैठते हैं। महंत अर्जुनदास जी ने यहां महानदी के तट पर एक घाट बनवाया था जो जोगीडीपा बस्ती के कारण जोगीडीपा घाट नाम से जाना जाने लगा। महंत अर्जुनदास और महंत गौतमदास जी के जीवित रहते यहां की भाोभा द र्शनीय थी बाद में यहां के महंतों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया जिससे मंदिर का परकोटा गिरने लगा है और बगीचा पूरी तरह से खत्म हो चुका है। संवत् १९१५ में महंत अर्जुनदास जी को १२ गांव की मालगुजारी अंग्रेज डिप्टी कमि नर ने मंदिर की भोगराग के लिए दी थी।

डोंगाघाट :- बुटीसाव घाट से लगा हुआ डोंगाघाट है। महानदी में नाव (डोंगा) इसी घाट से चलती थी।

सोनी घाट :- डोंगा घाट से लगा हुआ सोनी घाट है। इस घाट का निर्माण श्री हरिप्रसाद सोनी ने कराया है। बहुत दिनों तक नाव इसी घाट से चलाई जाती थी।

सिपाही घाट :- पुलिस थाना होने और सिपाहियों के नहाने के कारण इसे सिपाही घाट कहा जाने लगा। हालांकि यहां पर कोई पत्थर का घाट नहीं है। कुछ लोग इसे स्कूल घाट भी कहते हैं। क्योंकि स्कूल के विद्यार्थी इस घाट में आते थे।

रपटा घाट :- महानदी में कच्चा पुल यानी रपटा लोक निर्माण विभाग के विश्राम गृह के पास बनाया जाता था। इसी कारण इसे रपटा घाट कहा जाता है। वर्तमान में इसी घाट से लगा हुआ भाबरी पुल बनाया गया है। यहां पर बजरंगबली और काली का भव्य मंदिर बनने से यहां पर लोग भाशम को घूमने आते हैं

भम शान घाट :- बस्ती के पूर्वी छोर पर और रपटा घाट से लगा हुआ भम शान है। मृत भारीर के दाह संस्कार के कारण इस घाट को भम शान घाट कहा जाता है। साप्ताहिक मवे शी बाजार इसी अमराई में लगता है। यहां पर आम के पेड़ तो गिने चुने हैं लेकिन कृशि उपज मंडी अव य बन गया है। मथुआ मरार समाज का राधाकृश्ण मंदिर और बाढ़ नियंत्रण गृह भी यहीं पर बन गया है। इससे इस घाट का अस्तित्व समाप्त हो गया है और लोग मृत भारीर का दाह संस्कार भाबरी पुल के नीचे महानदी की रेत में करते हैं।

महानदी में हमे शा बाढ़ आती है और बहुत नुकसान होता है। सन् १८८४ और १८८९ में बाढ़ से तहसील कार्यालय के कागजात महानदी में बह गये जिससे अंग्रेज सरकार द्वारा शिवरीनारायण को 'बाढ़ क्षेत्र' घोशित कर इस नगर को खाली करने का आदे श दे दिया था। लेकिन लोगों की जन आस्था के कारण बस्ती खाली नहीं हुई लेकिन तहसील कार्यालय सन् १८९१ में जांजगीर स्थानान्तरित अव य हो गया। लोग की मांग पर मध्यप्रदे श के तात्कालीन मुख्य मंत्री श्री अर्जुनसिंह ने यहां महानदी पर पुल बनाने और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री विद्याचरण शुक्ल ने तटबंद के निर्माण की घोशणा की थी जो आज पूरा होने जा रही है। भाबरी सेतु के बन जाने से यह नगर अन्यान्य नगरों से बस मार्ग से जुड़ गया है और यहां के विकास का मार्ग खुल गया है। शिवरीनारायण को 'पर्यटन स्थल' के रूप में विकसित करने की घोशणा हो चुकी है लेकिन यह केवल घोशणा ही न रह जाये बल्कि कार्य रूप में परिणत भी होना चाहिए। आज का शिवरीनारायण उन्नत व्यापारिक स्थल के रूप में विख्यात् है और यहां की लोक संस्कृति को समेटने-प्रचारित करने के लिए छत्तीसगढ़ भाशसन द्वारा 'शिवरीनारायण महोत्सव' का आयोजन एक सराहनीय प्रयास है लेकिन महोत्सव की कार्य प्रणाली से जिस बात की कल्पना की गयी थी वह संदिग्ध नजर आ रही है।

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