Friday, November 30, 2007

मेला

छत्‍तीसगढ़में शिवरीनारायण के मेला का वि ोश महत्व है। क्यों कि यहां का मेला अन्य मेला की तरह बेतरतीब नहीं बल्कि पूरी तरह से व्यवस्थित होता है। दुकान की अलग अलग लाईनें होती हैं। एक लाईन फल दुकान की, दूसरी लाइन बर्तन दुकानों की, तीसरी लाइन मनिहारी दुकानों की, चौथी लाइन रजाई-गद्दों की, पांचवीं लाइन सोने-चांदी के जेवरों की होती है। इसी प्रकार एक लाईन होटलों की, एक लाइन सिनेमा-सर्कस की, एक लाइन कृशि उपकरणों, जूता-चप्पलों की दुकानें आदि होती है। इस मेले में दुकानदार अच्छी खासी कमाई कर लेता है।

नगर के पि चम में महंतपारा की अमराई में और उससे लगे मैदान में माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्री तक प्रतिवर्श मेला लगता है। माघ पूर्णिमा की पूर्व रात्रि में यहां भजन-कीर्तन, रामलीला, गम्मत, और नाच-गाना करके द र्शनार्थियों का मनोरंजन किया जाता है और प्रात: तीन-चार बजे चित्रोत्पलागंगा महानदी में स्नान करके भगवान भाबरीनारायण के द र्शन के लिए लाइन लगायी जाती है। द र्शनार्थियों की लाइन मंदिर से साव घाट तक लगता था। भगवान भाबरीनारायण की आरती के बाद मंदिर का द्वार द र्शनार्थियों के लिए खोल दिया जाता है। इस दिन भगवान भाबरीनारायण का द र्शन मोक्षदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ इस दिन पुरी से आकर यहां स शरीर विराजते हैं। कदाचित् इसी कारण दूर दूर से लोग यहां चित्रोत्पलागंगा-महानदी में स्नान कर भगवान भाबरीनारायण का द र्शन करने आते है। बड़ी मात्रा में लोग जमीन में ''लोट मारते'' यहां आते हैं। मंदिर के आसपास और माखन साव घाट तक ब्राह्मणों द्वारा श्री सत्यनारायण जी की कथा-पूजा कराया जाता था। रमरमिहा लोगों के द्वारा वि ोश राम नाम कीर्तन होता था। शिवरीनारायण में मेला लगने की शुरूवात कब हुई इसकी लिखित में जानकारी नहीं है लेकिन प्राचीन काल से माघी पूर्णिमा को भगवान भाबरीनारायण के द र्शन करने हजारों लोग यहां आते थे...और जहां हजारों लोगों की भीड़ हो वहां चार दुकानें अव य लग जाती है, कुछ मनोरंजन के साधन-सिनेमा, सर्कस, झूला, मौत का कुंआ, पुतरी घर आदि आ जाते हैं। यहां भी ऐसा ही हुआ होगा। लेकिन इसे मेला के रूप में व्यवस्थित रूप महंत गौतमदास जी की प्रेरणा से हुई। मेला को वर्तमान व्यवस्थित रूप प्रदान करने में महंत लालदास जी का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मठ के मुख्तियार पंडित कौ शलप्रसाद तिवारी की मद्द से अमराई में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को व्यवस्थित रूप प्रदान कराया। पंडित रामचंद्र भोगहा ने भी भोगहापारा में सीमेंट की दुकानें बनवायी और मेला को महंतपारा की अमराई से भोगहापारा तक विस्तार कराया। चूंकि यहां का प्रमुख बाजार भोगहापारा में लगता था अत: भोगहा जी को बाजार के कर वसूली का अधिकार अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। आजादी के बाद मेला की व्यवस्था और कर वसूली का दायित्व जनपद पंचायत जांजगीर को सौंपा गया था। जबसे शिवरीनारायण नगर पंचायत बना है तब से मेले की व्यवस्था और कर वसूली नगर पंचायत करती है। नगर की सेवा समितियों और मठ की ओर से द र्शनार्थियों के रहने, खाने-पीने आदि की नि: शुल्क व्यवस्था की जाती है।

आजादी के पूर्व अंग्रेज सरकार द्वारा गजेटियर प्रकाशित कराया गया जिसमें मध्यप्रदे श के जिलों की सम्पूर्ण जानकारी होती थी। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ फ्यूडेटरी इस्टेट प्रकाशित कराया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के रियासतों, जमींदारी और द र्शनीय स्थलों की जानकारी थी। आजादी के प चात सन १९६१ की जनगरणा हुई और मध्यप्रदे श के मेला और मड़ई की जानकारी एकत्रित करके इम्पीरियल गजेटियर के रूप में प्रकाशित किया गया था। इसमें छत्तीसगढ़ के छ: जिलों क्रम श: रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, रायगढ़, सरगुजा, बस्तर के मेला, मड़ई, पर्व और त्योहारों की जानकारी प्रकाशित की गयी है। इसके अनुसार छत्तीसगढ़ में शिवरीनारायण, राजिम और पीथमपुर का मेला १०० वर्श से अधिक वर्शो से लगने तथा यहां के मेला में एक लाख द र्शनार्थियों के भाशमिल होने का उल्लेख है।

यहां के मेला में वैवाहिक खरीददारी अधिक होती थी। बर्तन, रजाई-गद्दा, पेटी, सिल-लोढ़ा, झारा, डुवा, कपड़ा आदि की अच्छी खरीददारी की जाती थी। मेला में अकलतरा और शिवरीनारायण के साव स्टोर का मनिहारी दुकान, दुर्ग, धमधा, बलौदाबाजार, चांपा, बहम्नीडीह और रायपुर का बर्तन दुकान, बिलासपुर का रजाई-गद्दे की दुकान, कलकत्ता का पेटी दुकान, चुड़ी-टिकली की दुकानें, सोने-चांदी के जेवरों की दुकानें, नैला के रमा शंकर गुप्ता का होटल और उसके बगल में गुपचुप दुकान, अकलतरा और सक्ती का सिनेमा घर, किसिम किसिम के झूला, मौत का कुंआ, नाटक मंडली, जादू, तथा उड़ीसा का मिट्टी की मूर्तियों की प्रदि र्शनी-पुतरी घर बहुत प्रसिद्ध था। यहां उड़िया संस्कृति को पोशित करने वाला सुस्वादिश्ट उखरा बहुतायत में आज भी बिकने आता है।

शिवरीनारायण और आस पास के गांवों में मेला के अवसर पर मेहमानों की अपार भीड़ होती है। इस अवसर पर वि ोश रूप से बहू-बेटियों को लिवा लाने की प्रथा है। भाशम होते ही घर की महिलाएं झुंड के झुंड खरीददारी के निकल पड़ती हैं। खरीददारी के साथ साथ वे होटलों और चाट दुकानों में अव य जाती हैं और सिनेमा देखना नहीं भूलतीं। मेला में वैवाहिक खरीददारी अव य होती है। भाशसन द र्शनार्थियों की सुविधा के लिए पुलिस थाना, विभिन्न भाशसकीय प्रदि र्शनी, पीने के पानी की व्यवस्था आदि करती है। लोग चित्रोत्पलागंगा में स्नान कर, भगवान भाबरीनारायण का द र्शन करने, श्री सत्यनारायण की कथा-पूजा करवाने और मंदिर में ध्वजा चढ़ाने से लेकर विभिन्न मनोरंजन का लुत्फ उठाने और खरीददारी कर प्रफुल्लित मन से घर वापस लौटते हैं। यानी एक पंथ दो काज... तीर्थ यात्रा के साथ साथ मनोरंजन और खरीददारी। लोग मेले की तैयारी एक माह पूर्व से करते हैं।

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